सामूहिक सत्संग: एकता का केंद्र, विभाजन का कारण?
आज के समय में, सत्संग के लिए स्थाई स्थानों का निर्माण एक सराहनीय पहल है। ये स्थान धार्मिक समुदाय को एक साथ लाते हैं, जहाँ सभी सेवा, सिमरन और सत्संग का आनंद ले सकते हैं। सामूहिक सत्संग का यह माहौल आध्यात्मिक उन्नति के लिए अनुकूल होता है। हालांकि, हाल ही में एक चिंताजनक प्रवृत्ति देखी जा रही है। छोटे-छोटे मोहल्लों में सत्संग का आयोजन इतना बढ़ गया है कि मुख्य, सामूहिक स्थानों पर संतों के लिए समय ही नहीं बचता। इसका एक कारण यह भी है कि इन छोटे सत्संगों में एक व्यक्ति को इंचार्ज बना दिया जाता है, जो अपने अधिकार क्षेत्र में एक प्रधानमंत्री की तरह व्यवहार करने लगता है। यह इंचार्ज, संतों को निर्देश देता है, उनकी गतिविधियों को नियंत्रित करता है, और यहां तक कि संतों के घरों में जाने के लिए भी अनुमति लेने की अपेक्षा करता है। इससे संतों में आपसी मतभेद और असंतोष पैदा होता है, और उनकी सेवा भावना भी कमजोर पड़ने लगती है। इसके अलावा, अलग-अलग इंचार्ज एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा करने लगते हैं, मानो वे प्रभु परमात्मा के ज्ञान प्रसार के लिए नहीं, बल्कि व्यक्तिगत मान-सम्मान के लिए काम कर रहे हों। यह प्रतिस्पर्धा सत्संग के पवित्र माहौल को दूषित करती है और विभाजन का कारण बनती है। इसलिए, यह आवश्यक है कि सत्संग का आयोजन मुख्य रूप से सामूहिक स्थानों पर ही किया जाए। इससे संतों में एकता बनी रहेगी, सेवा भावना मजबूत होगी, और सत्संग का वास्तविक उद्देश्य - आध्यात्मिक उन्नति - पूरा होगा। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि सत्संग का उद्देश्य व्यक्तिगत लाभ या प्रतिष्ठा नहीं, बल्कि परमात्मा के ज्ञान का प्रसार और भक्तों का आध्यात्मिक विकास है। आइए, हम सामूहिक सत्संग को एकता का केंद्र बनाएं, विभाजन का कारण नहीं।
मार्च 29, 2024
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NIRANKARI VICHAR
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