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सत्संग का आनंद: दिखावा त्यागें, सरलता अपनाएं

 सत्संग का आनंद: दिखावा त्यागें, सरलता अपनाएं


सत्संग, वह पावन स्थल जहाँ हम ईश्वर के नाम का सुमिरन करते हैं, ज्ञान की गंगा में डुबकी लगाते हैं, और आत्मा को शांति प्रदान करते हैं। पर अक्सर, हम इस पवित्र स्थान को भी अपने अहंकार का अखाड़ा बना लेते हैं। हम अपने आप को महान साबित करने के चक्कर में, अलग-अलग स्थितियों का प्रदर्शन करने लगते हैं। कभी ज्ञानी बनकर उपदेश देते हैं, तो कभी भक्त बनकर भावुकता का ढोंग रचते हैं। इस दिखावे के चक्कर में, हम सत्संग के असली आनंद से वंचित रह जाते हैं, और साथ ही निंदा और नफरत के पात्र भी बन जाते हैं।

**दिखावे का जाल और उसके दुष्परिणाम:**

* **अहंकार का पोषण:** जब हम सत्संग में दिखावा करते हैं, तो अनजाने में ही अपने अहंकार को बढ़ावा देते हैं। हम दूसरों से प्रशंसा पाने की लालसा में, अपनी अच्छाइयों का बखान करते हैं और अपनी कमियों को छुपाने का प्रयास करते हैं। इससे हमारा मन अहंकार के जाल में उलझता जाता है, और हम सत्संग के वास्तविक उद्देश्य से भटक जाते हैं।
* **नकारात्मकता का संचार:** दिखावा करने वाला व्यक्ति, अपने आस-पास नकारात्मकता का वातावरण बनाता है। दूसरों की नजरों में ऊँचा उठने की होड़ में, वह दूसरों की बुराई करने लगता है, उनकी निंदा करता है, और उनसे ईर्ष्या करने लगता है। इससे सत्संग का पवित्र वातावरण दूषित होता है, और लोगों के मन में एक-दूसरे के प्रति द्वेष की भावना उत्पन्न होती है।
* **आत्म-विकास में बाधा:** सच्चा आत्म-विकास तभी संभव है जब हम अपने दोषों को स्वीकार करें और उन्हें दूर करने का प्रयास करें। दिखावा करने से हम अपने दोषों को नकारते हैं और उन्हें छिपाने का प्रयास करते हैं। इससे हमारा आत्म-विकास रुक जाता है और हम सत्संग से कोई लाभ नहीं उठा पाते।

**सरलता का मार्ग और सच्चा आनंद:**

सत्संग का आनंद लेने का सबसे सरल उपाय है - सरलता। हमें दिखावे का त्याग कर, एक साधारण श्रोता बनकर सत्संग में जाना चाहिए। ज्ञान की बातों को ध्यान से सुनना चाहिए, और उन्हें अपने जीवन में उतारने का प्रयास करना चाहिए। ईश्वर के नाम का सुमिरन करना चाहिए, और अपने मन को शांत करना चाहिए। सत्संग के बाद, अपने घर की ओर चले जाना चाहिए, और अपने दैनिक कार्यों में लग जाना चाहिए।

जब हम सरलता का मार्ग अपनाते हैं, तो हमें कई लाभ प्राप्त होते हैं:

* **मन की शांति:** दिखावे का त्याग करने से मन को शांति मिलती है। हम दूसरों की प्रशंसा और निंदा से प्रभावित नहीं होते, और अपने आत्म-विकास पर ध्यान केंद्रित कर पाते हैं।
* **सकारात्मकता का संचार:** जब हम सरलता से सत्संग में जाते हैं, तो हमारे आस-पास सकारात्मकता का वातावरण बनता है। हम दूसरों के साथ प्रेम और सद्भाव से पेश आते हैं, और सत्संग का वातावरण पवित्र बना रहता है।
* **आत्म-विकास में प्रगति:** सरलता अपनाने से हम अपने दोषों को स्वीकार करना सीखते हैं, और उन्हें दूर करने का प्रयास करते हैं। इससे हमारा आत्म-विकास होता है, और हम सत्संग से पूर्ण लाभ उठा पाते हैं।

इसलिए, आइए हम सत्संग में दिखावे का त्याग करें और सरलता का मार्ग अपनाएं। केवल सत्संग सुनें, उसका आनंद लें, और फिर अपने घर की ओर चले जाएं। यही सच्चा सत्संग है, और यही सच्चा आनंद है।

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