गुस्से में रहूंगा अकड़ में रहूंगा ताकि कोई मेरा पद न छीन ले
धार्मिक संस्थाओं में, खासकर शहरों, जिलों और छोटे गांवों में सत्संगों में यह देखना चिंताजनक है कि पदाधिकारी नए संतों को अपनी सेवा में भागीदारी नहीं देते हैं। उनके मन में यह डर रहता है कि कहीं ये नए संत उनकी जगह न ले लें।
यह सोच भ्रामक और हानिकारक है। निरंकार प्रभु के दर्शन के बाद किसी भी पद का कोई महत्व नहीं रह जाता। सच्चा धार्मिक व्यक्ति सेवा भावना से प्रेरित होता है, पदों की लालसा से नहीं।
यह ज़रूरी है कि हम सभी मिलकर धर्म संस्थाओं में एक सकारात्मक और सहयोगात्मक वातावरण बनाएं। नए लोगों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए और उन्हें अपनी क्षमताओं का उपयोग करते हुए सेवा करने का अवसर दिया जाना चाहिए।
यह याद रखना ज़रूरी है कि धर्म का सच्चा उद्देश्य लोगों को आध्यात्मिक रूप से उन्नत करना है, न कि पदों और अधिकार के लिए प्रतिस्पर्धा करना।
हमें अपने मन से लालसा और ईर्ष्या को दूर करना चाहिए और मिलकर काम करना चाहिए ताकि सभी को आध्यात्मिक ज्ञान और शांति प्राप्त हो सके।
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