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भूलते नहीं, जोड़ते हैं: बुजुर्ग संत महापुरुषों का सम्मान और सत्संग की सेवा

भूलते नहीं, जोड़ते हैं: बुजुर्ग संत महापुरुषों का सम्मान और सत्संग की सेवा


महापुरुषों जी कितना सुंदर कहा है,
"सत्संग केवल एक सभा नहीं, बल्कि यह आत्माओं का मिलन और स्नेह का प्रतीक है।"

आज जब हम सत्संग की बात करते हैं, तो हमारे मन में उन बुजुर्ग संतों का चेहरा भी आता है, जिन्होंने अपने जीवन का बड़ा हिस्सा सेवा, सुमिरन और संगत के लिए समर्पित कर दिया। लेकिन जैसे-जैसे उनकी आयु बढ़ती है, उनका शरीर कमजोर हो जाता है और वे संगत में उपस्थित होने में असमर्थ हो जाते हैं।

यह स्थिति न केवल उनके लिए, बल्कि संगत के लिए भी भावनात्मक रूप से चुनौतीपूर्ण होती है। क्योंकि जो संत कभी सत्संग की रीढ़ माने जाते थे, अब वे घरों में अकेले समय बिता रहे हैं।


सत्संग का उद्देश्य: जोड़ना, न कि भूल जाना

सत्संग का उद्देश्य केवल भौतिक उपस्थिति तक सीमित नहीं है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो आत्माओं को जोड़ती है और हर एक को ईश्वर से जोड़े रखने का माध्यम बनती है। लेकिन जब हमारे बुजुर्ग संत संगत में आने में असमर्थ हो जाते हैं, तो यह हमारा कर्तव्य बन जाता है कि हम उनके घर जाकर सत्संग की अनुभूति उनके पास लेकर जाएं।

वे संत, जिन्होंने कभी अपनी शिक्षाओं से हमें प्रेरित किया, जिन्होंने हमें सेवा और सुमिरन का महत्व समझाया, वे अब हमारे सहारे की प्रतीक्षा करते हैं। उनका हाल-चाल पूछना, उनके साथ कुछ समय बिताना और उन्हें सत्संग की बातें सुनाना न केवल हमारा दायित्व है, बल्कि यह सत्संग की भावना को जीवित रखने का तरीका भी है।


भावनात्मक जुड़ाव और मानवता की शिक्षा

जब हम बुजुर्ग संतों के घर जाकर उनके हाल-चाल पूछते हैं, तो यह सिर्फ एक औपचारिकता नहीं होती, बल्कि यह एक भावनात्मक जुड़ाव का प्रतीक है। यह उनके भीतर यह विश्वास जगाता है कि वे संगत का एक अभिन्न हिस्सा हैं, चाहे उनकी शारीरिक स्थिति कैसी भी हो।

उनसे सत्संग की बातें करना, उनके साथ भजन गाना या केवल उनके अनुभव सुनना, यह सब उनकी आत्मा को तृप्त करता है। यह उन्हें यह महसूस कराता है कि उनकी उपस्थिति भले ही संगत में न हो, लेकिन संगत उनसे जुड़ी हुई है।


सत्संग को हर घर तक पहुंचाने का प्रयास

महापुरुषों जी, यह प्रयास केवल एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि पूरी संगत का होना चाहिए। हमें संगत के हर सदस्य को इस दिशा में प्रेरित करना चाहिए कि वे अपने क्षेत्र के बुजुर्ग संतों का ध्यान रखें।

  • समय देना: सप्ताह में एक बार या जब भी संभव हो, किसी बुजुर्ग संत के घर जाएं।
  • सत्संग का हिस्सा बनाएं: उनके साथ सत्संग की कोई रिकॉर्डिंग सुनें या भजन गाएं।
  • स्नेह और सम्मान: उनके अनुभव सुनें और उनसे सीखें। उनके अनुभव हमें जीवन जीने की प्रेरणा दे सकते हैं।

बुजुर्ग संत: प्रेरणा के स्रोत

बुजुर्ग संत हमारे लिए प्रेरणा के स्रोत हैं। उनके जीवन के अनुभव, उनकी भक्ति और उनका सेवा भाव हमें जीवन की सच्ची राह दिखाते हैं। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि एक दिन हम भी उनकी अवस्था में होंगे।

जो आज हम उनके लिए करेंगे, वही संस्कार आने वाली पीढ़ी को सिखाएंगे। इसलिए यह सुनिश्चित करना हमारा कर्तव्य है कि कोई भी बुजुर्ग संत अकेलापन महसूस न करे।


निष्कर्ष


"सत्संग की सच्ची भावना वही है, जहां हर आत्मा जुड़ी हुई महसूस करे।"

आइए, हम सभी इस बात का संकल्प लें कि कोई भी बुजुर्ग संत खुद को संगत से अलग न महसूस करे। हम अपने समय का एक अंश उन्हें समर्पित करें, उनके साथ सेवा, सुमिरन और सत्संग की बातें करें। यही सच्चा सत्संग है, यही सच्चा मानवता का धर्म है।

धन निरंकार जी

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